कोई जादू लगे है ख़यालात भी
खूब होती शरारत मेरे साथ भी
सब्र को अब मिले कोई सौगात भी
रंजिशे और नफरत भुला कर सभी
हो कभी दिल से दिल की मुलाक़ात भी
है बला की कशिश और लज़्ज़त जुदा
कोई जादू लगे है ख़यालात भी
फ़ासले अब मिटें, बंदिशें सब हटें
प्यार की छांव में बीते दिन-रात भी
है लबों पे दुआ गर सुनो तुम सदा
हो अयाँ आंखों से दिल के जज़्बात भी
चाहतों से महकता रहे सहने दिल
हम पे रहमत करे अब ये बरसात भी
दूर रख इन ग़मों को चलो कुछ हँसे
वक़्त के साथ बदलेंगे हालात भी
अयाँ: जाहिर, सहन: आँगन
© हिमकर श्याम