कोई-कोई
सबको पसंद अपना चेहरा है
रूह को देखता है कोई-कोई,
मुस्कुराहट नजर आती है सबको
छिपे दर्द को देखता है कोई-कोई,
चकाचौंध के पीछे दुनिया पड़ी है
मेहनत करता है कोई-कोई,
भीड़ तो भरे पड़े हैं
सत्संग की पंडाल में
सत्य भाव से वहां गया है
गिना-चुना कोई-कोई,
उठने का शौक सबको चढ़ा है
नींव का पत्थर बनता है कोई कोई।