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27 May 2024 · 1 min read

कोई-कोई

सबको पसंद अपना चेहरा है
रूह को देखता है कोई-कोई,
मुस्कुराहट नजर आती है सबको
छिपे दर्द को देखता है कोई-कोई,

चकाचौंध के पीछे दुनिया पड़ी है
मेहनत करता है कोई-कोई,

भीड़ तो भरे पड़े हैं
सत्संग की पंडाल में
सत्य भाव से वहां गया है
गिना-चुना कोई-कोई,
उठने का शौक सबको चढ़ा है
नींव का पत्थर बनता है कोई कोई।

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