कोई किताबें है पड़ता __मुक्तक
कोई किताबें है पड़ता ,कोई चेहरा ही पड़ता है।
बैठे बैठे खोए खोए ,अपने सपने गढ़ता रहता है।।
मंजिल किसी को बुलाती, रुलाती रहती किसी को।
कर्म__ भाग्य से मानव, जीवन भर लड़ता रहता है।।
राजेश व्यास अनुनय
कोई किताबें है पड़ता ,कोई चेहरा ही पड़ता है।
बैठे बैठे खोए खोए ,अपने सपने गढ़ता रहता है।।
मंजिल किसी को बुलाती, रुलाती रहती किसी को।
कर्म__ भाग्य से मानव, जीवन भर लड़ता रहता है।।
राजेश व्यास अनुनय