कोई कश्मीर को छीने ये गवारा कैसे।
गज़ल
काफिया- आ स्वर
रदीफ़- कैसे
फाइलातुन फियलातुन फियलातुन फियलुन (फैलुन)
2122………1122……..1122…….22
जिसको सींचा है लहू से वो तुम्हारा कैसे।
कोई कश्मीर को छीने ये गवारा कैसे।
तेरे आने से ही बागों मे बहाराती है।
तू न आयी तो कोई फूल खिलेगा कैसे।
हमनें तुमको तो सदा रब की तरह चाहा था,
तुमने फिर नाम रकीबों से हटाया कैसे।
घर गरीबों के जलाए हैं खुदा माफी दे,
तुमने सोते हुए बच्चों को जलाया कैसे,
गिरते शोले से बदन पर ये जो शीतल छाया,
ये शजर तूने मरुथल में उगाया कैसे।
जिंदगी तो ये अमानत है खुदा की यारो,
उसको मैं यूँ ही गँवाकर के दूं बिता कैसे।
हर तरफ बंद पुलिस और न घर में खाना,
उसने इस दौर में बच्चों को खिलाया कैसे।
लाज लुटती हो बहन बेटी की सम्मुख मेरे,
तू बता होगा मुझे कब ये गवारा कैसे।
मैं हूँ प्रेमी न मुझे और समझ तू दिलवर,
अपने दिल में भी मुझे तूने बिठाया कैसे।
…….✍️ प्रेमी