कोई और नहीं मैं नारी हूँ
कोई और नहीं मैं नारी हूँ
कहने को मैं 21वीं सदी में जी रही हूँ
पर जख्मों को अपने खुद ही सी रही हूँ |
जख्म कुरेदने को तैयार हर शख्स है
फिर जिंदगी भर मुझे बड़ा रस्क है
गर्व से ऊंचा इसलिए मेरा मस्तक है ||
सागर से गहरा है आँचल मेरा
अंबर से ऊंची मुझ में सोच
पर्वत से दृढ़ इरादे हैं
हवाओं सा है मुझ में जोश ||
नदियों सी बहती सदा ही अविरल
पृथ्वी सी कोमल हूँ
जो बोया सदा तुमने मुझ में मैंने कण कण लौटया है |
मुझसे फलित है वंश तुम्हारा
तन मन सदा समृद्ध है
प्रेम अगर दिया है तुमने
मैंने सहा दंश तुम्हारा ||
कब तक लगता है रहेगा तुमको
तुम ही हो मेरा सहारा
पार नहीं नईया होगी
नहीं है बिन तुम्हारे किनारा ||
अब तो तुम यह भ्रम मिटा दो
जरूरी हूं मैं यह सब को बता दो
कुछ भी ना तुम्हारा जाएगा
पर ! मेरी नजरों में शायद मान तुम्हारा बढ़ जाएगा ||
दीपाली कालरा