कोई ऐसा दीप जलाओ
कोई ऐसा दीप जलाओ
दीवाली की धूम मची है,
हर दिल में खुशियां अपार है
घर बाहर आँगन चौबारे
दीपों का तम पर प्रहार है
रात अमावस की है लेकिन
नहीं दीखता अंधकार है
रंगोली दीपों से रोशन
धरती का अद्भुत श्रँगार है
लेकिन ये खुशियाँ आधी हैं
टीस मची है अंतर्मन में
धन यश वैभव खूब कमाया,
पर संतोष नहीं जीवन में
बाहर जितना उजियारा है
मन में उतना अंधकार है
कितनी ही ऐसी चौखट हैं
जो उदास हैं अँधियारी हैं
एक दीप ज्योतित करने की
कोशिश में भी वो हारी हैं
कौन हरेगा इनके तम को
इनका जीवन अँधकार है
तुम समर्थ हो खुशियाँ बाँटो
महका दो इनका भी जीवन
थोड़े से कुछ दीप जलाकर
चमका दो इनका भी आँगन
चेहरों पर मुस्कान खिल उठे,
जिन पर पसरा अंधकार है
खुशी बाँटने से अपनी भी
खुशी दोगुनी हो जाएगी
घना अँधेरा छँट जाएगा
और दीवाली मन जाएगी
कृष्ण आज इस दीवाली पर
कोई ऐसा दीप जलाओ
मन का तमस मिटा दे सारा
शेष रहे बस प्यार प्यार है
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद