कोई एक
हज़ारों में से किसी एक को
होता है हक़ स्त्री के अंदर झाँकने का,
ख़ुशी के पीछे के दर्द को समझने का,
मुस्कुराहट के पीछे के ग़म देख पाने का,
औरतें कहाँ खुल पाती हैं हर किसी के साथ,
वो अधिकार तो होता है बस किसी एक का,
वो जो अपना हो न हो,
जिसे दे अधिकार स्त्री अंतर्मन को छू जाने का,
जिसे दे स्त्री अधिकार ख़्वाबों में आ जाने का,
उसके ज़हन और आत्मा पर छा जाने का,
हज़ारों में किसी एक को होता है ,
होता है हक़ ,हक़ जताने का,
महज़ जिस्म से नही आत्मा से क़रीब आने का,
उन दर्दों को सहलाने का, जो दिए जाते हैं उसी की प्रजाति द्वारा,
फिर भी देती है हक़ स्त्री किसी एक को क़रीब आने का,
उसे अपनाने का, उसका हो जाने का,
हाँ, हज़ारों में किसी एक को…..