कोई अपना सा
उस महजबीं को जब देखा ; तो लगा उसे कहीं देखा है,
दिन की रंगीन फिज़ाओं में , या रात की चांदनी में कहीं
देखा है ,
या मेरे ख्यालों में मुद्दत से बनी जो तस्वीर है , उसे मुजस्सम पाया है ,
या उस पैकर – ए -पुरनूर की इक झलक है जिसे
शब -ए-तीरग़ी में देखा है ,
या मेरे हसीं ख्व़ाबों की ता’बीर है वो , ये एहसास दिल ने कराया है ,
या हुस्न की तारीफ में कहे ; मेरे दिल के नग़मों का असर आज सामने आया है ,
लगता है वो मुझे कोई अपना सा बेगाना नहीं ,
जो आज तक मेरे दिल के करीब रहा ,
जिसे मैने पहचाना नहीं ,