कोई अपना मिला था
मुझे इस बेगानी दुनिया में
कोई अपना मिला था
मेरी इन जागती आंखों का
जैसे सपना मिला था…
(१)
उसका चेहरा जितना मासूम था
उतनी ही शोख थीं उसकी निगाहें
मेरी अब तक की दुआओं का
जैसे वह तो सिला था…
(२)
ना तो बरसे थे कजरारे बादल
ना ही चली थीं मदमस्त हवाएं
पतझड़ के रूखे मौसम में ही
दिल फिर भी खिला था…
(३)
फिर जाने मेरी किस ग़लती से
वह होता चला गया मुझसे दूर
काश,थोड़ा लड़-झगड़ ही लेता
अगर उसको गिला था…
(४)
हाल-चाल पूछना तो बड़ी बात
उसने देखना तक मुझे छोड़ा
उसके बदले हुए बर्ताव से
मेरा वजूद हिला था…
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Shekhar Chandra Mitra
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