कॉलेज का अंतिम दिन
वो कॉलेज का था अंतिम दिन
आंखो मे नमी सी थी
मुकम्मल तो बहुत कुछ था
मगर थोड़ी कमी भी थी
कमी थी ये कि अपने दोस्त सब दूर जाने थे
जो गुजरे थे हसी लम्हे मगर कब लौट आने थे
अंदर से दुखी थे सब
होठों पर हसी भी थी
मुकम्मल तो बहुत कुछ था
मगर थोड़ी कमी भी थी
वहां केण्टीन की चाय ने सभी यादें संभाली थी
यारों की हसीन दुनिया लगी सच मे निराली थी
कुछ सपने हमारे थे
और नीचे जमीं भी थी
मुकम्मल तो बहुत कुछ था ………
कॉलेज की सभी यादें समेटे ले चले हैं अब
सभी गुरुजन सभी यारों को अलविदा कह चले हैं अब
लिखे अल्फाज़ ‘भंडारी’ कहानी अनकही सी थी
मुकम्मल तो बहुत कुछ था
मगर थोड़ी कमी भी थी