कॉमरेड आओ चाय पीते हैं
कॉमरेड आओ चाय पीते हैं
कुछ तेरी सुनते हैं
कुछ मेरी कहते हैं
कुछ कहते-कहते चुप भी रहते हैं
कॉमरेड, आओ चाय पीते-पीते
देश की सैकड़ों मांओं के घाव को सीते हैं
रात को निकली थी जो आंसू
गलों पे जाकर जो ठहरी है
उसके नमक से चाय को
जरा खारा सा करते
बेटी के लूटने, पिटने, तेजाब से जलने पे
हम भी जरा जलते बुझते हैं,
भूखे चिल्का के रुदन पे आहें भरते हैं,
पेट और छाती में अंतर् कर के देखते हैं
कॉमरेड आओ चाय पीते-पीते
युवाओं के मन की बातें करते हैं
उनके फटे हुए जेबों में घुसकर नोट गिनते हैं
कॉमरेड आओ, पुलवामा हमले की
घपले बाजी पे कुछ बातें करते हैं
जवानों की लाशों की भी गिनती करते हैं
कॉमरेड आओ न, बेरोजगारी और
सरकारी महकमें के बिकने पे किस्सा करते हैं
देश की जनता के मन की बातों पर
अपने मन का कुछ हिस्सा रखते हैं
कॉमरेड आओ न, चाय पीते हैं…
…सिद्धार्थ