Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Jul 2023 · 4 min read

कॉफी हाउस

बनने के क्रम में इसका हर निर्माण कार्य आंखों देखा रहा लेकिन पुरानी इमारत केवल सहनशक्ति की वजह से हटाई गई जबकि उसमे वो हर याद मौजूद थी जो एहसासों की असहनीय शक्ति के साथ-साथ पुरानी यादों मे किसी अदृश्य के साथ डुबकी लगाती थी।
पहला कदम ही अंदर रखने पर ताज़गी का अहसास, दीवारों पर सफेद रंग के साथ ही साथ चित्रकारी के नमूने,खुद से बोलता कॉफी हाउस का कमरा,एक ऐसा वातावरण बनाता हुआ कि उससे बाहर आना मुश्किल लगने लगता है,बैठने का स्थान जैसे कॉफी हाउस ने खुद बताया हो।
कुछ समय बाद एक आवाज जानी पहचानी सी- तुम्हें यही जगह मिली इतने बड़े कॉफी हाउस में।
(गुस्से में)
अजय- जगह इतनी सुंदर है कि पूरा चित्रमयी कमरा देखने के लिए यहीं जगह ठीक लगी।
(विनम्र भाव से)
सुमन- तुम्हारे साथ यहीं दिक्कत है, उस जगह नहीं बैठ सकते थे,जहां पर कूलर की हवा आती है।(माथे का पसीना पोचती हुई)
-बात आगे बढ़ती है
लेकिन
फिर एक और आवाज़ इस बार कुछ तीव्र और ना सुनने पर भी सुनाई देने वाली

आवाज़ – तुम क्यों बुला लेते हो बार बार इसी जगह,जानते हुए भी कि यहां अच्छा नहीं लगता है अब
( आंखों मे नमी लेकिन होंठ रूखे)
आवाज़ (२) मैं अपने आप आ जाता हूं, यहीं पर पहली हमारी मुलाकात हुईं थी।
(आंखों मे आंखे मिलाकर)
आवाज़- बहुत कुछ बदल चुका हैं, तुम्हें अब आगे बढ़ना चाहिए। जानते हो सब कुछ फिर भी, इस बार अंतिम बार मिलना है हमारा,इसके बाद मैं नहीं मिल पाऊगी,बहुत मुश्किल से आ पाई हूं।
(इस बार आंख और होंठ दोनों में नमी नहीं)
आवाज़(२)- बदला कुछ नहीं है,बस तुम बदल चुकी हो।
(आंख नीचे करके,विनम्र भाव से)

सुमन – यह किस तरीके की बातें हो रही है?
(कुछ न समझ पाने जैसी स्थिति में)
अजय- पता नहीं,लेकिन इतना समझ मे आ रहा है कि कुछ टूटने वाला है।
(समझाने की नाकाम कोशिश)
सुमन- क्या टूटने वाला है!
(फिर से अनभिज्ञ जैसी स्थिति)
अजय- वही जिसके टूटने पर आज तक आवाज नहीं आई।

(अचानक से एक और आवाज़, ना सुनने पर भी सुनाई दे जाती है।)
आवाज़- कैसी हो तुम?
आवाज़(२)- देख सकते हो तुम।
आवाज़ -दिखाई कम देने लगा है अब।
आवाज़(२)- चश्मा लगा के कब से देखने लगे मुझे।
(कुछ पलों के लिए आवाज का रुकना)
आवाज़ – क्या उस पल मैं रोक सकता था तुम्हें?
आवाज़(२)- पता नही,शायद तुमने कोशिश नहीं की।
आवाज़-तुमने हिम्मत भी कहां दी?
आवाज़ (२ )-प्यार करने वालों को हिम्मत की जरूरत कब से पड़ने लगी!
आवाज़- खुश हो?
आवाज़ (२)-जीवन का अंतिम समय चल रहा है, अब खुशी का होना ना होना मायने नहीं रखता, नाती-पोतो के साथ समय निकल जाता है।
(बात पलटते हुए)
कितना कुछ बदल चुका है इस जगह मे,पहले बस एक झोपड़ी थी,दद्दू की चाय और समोसे। अब तो नई इमारत ही बन गई।
आवाज़- मेरे लिए अभी भी वैसा ही है सब कुछ, आज भी झोपड़ी ही दिखाई देती है,तुम्हारे घने काले बालों के साथ आंखो का काजल और होंटों का गुलाबीपन सब कुछ वैसा ही दिखता है।

सुमन-ये लोग किस जमाने मे जी रहे है?
अजय- लगता है ये समय के पीछे है,या हो सकता है समय के आगे लेकिन वर्तमान समय मे नही है।
सुमन- तुम अपना पूरा साहित्य यहीं निकाल लो।
अजय-अब तुम्हें क्या हो गया?
(सुमन कुछ बोलने को होती ही है कि
फिर से तीव्र आवाज ना सुनने पर भी सुनाई देने वाली)

आवाज़ -मैं नहीं बदली हूं,तुम मानो तब ना,कहां जाऊं मैं,इससे अच्छा जहर पी लूं।

(वेटर- सर आपकी कॉफी, मैम आपकी कोल्ड काफी)

आवाज़ 2- कैसी बहकी बहकी बातें कर रही हो,जहर तो मैं पी रहा हूं,तुम्हारे दूर जाने के ख्याल बस से सांसें रुकने लगती है।
आवाज़- तुम्हें समझना चाहिए और भी तो लोग है,तुम्हे मुझसे अच्छी लड़की मिलेगी।
आवाज़ 2 तुम क्यों नहीं!
आवाज़- तुमसे मिलना ही नहीं था।
(इसी बीच नम्र आवाजें)
आवाज़- ये कितने नादान है,अभी इनको बहुत कुछ देखना बाकी है।
आवाज़(2)- ये एहसास हमारे बीच पहले गुजर चुका है!
आवाज़- मुझे कुछ याद नहीं।
आवाज़(2)- कि याद करना नही चाहती!
आवाज़ -यादें रूला देती है
आवाज़(2)- उस दिन तुम्हारी आंखों मे………(बोलते बोलते रुक आवाज रुक जाती है)
आवाज़- मेरी आंखों मे क्या,बोलो ना, क्या दिखता है!
आवाज़(1)-कुछ नहीं…..(बोलते बोलते रुक जाता है)
आवाज़- आज बोलना पड़ेगा।
आवाज़(2)- मेरे बोलने से तुम वापिस तो नहीं आ सकोगी।
(कॉफी हाउस मे एक अजीब ही तरह का सन्नाटा छा जाता है)
सुमन-यहां से चलो अजय मुझे घबराहट हो रही है
अजय- तुम भला कैसे घबरा सकती हो?
सुमन -मजाक नहीं,प्लीज यहां से चलो।
अजय- ठीक है चलते है, पहले कुछ खा तो लो।
सुमन- बाहर कहीं खा लेंगे लेकिन यहां से जल्दी चलो
अजय -क्या तुम भी ऐसा करोगी!
सुमन -कैसा करोगी!
अजय-जैसा अभी सुनकर महसूस हुआ है तुम्हें,क्या तुम भी दूर हो जाएगी?
सुमन- मुझे कुछ नहीं पता,बस यहां से चलो।
अजय-क्या यह हमारे साथ भी होगा!
सुमन- समझते क्यों नहीं तुम,कितनी बार कहना पड़ेगा यहां से जल्दी चलो।
अजय- समय वही है, दोनों रिश्ते अपनी बदलाहट की स्वीकार्यता को समझ नहीं पा रहे है।
सुमन-पूरा साहित्य यहीं निकाल लो तुम,बैठो यहीं,मैं चली।
(कुछ सोचता सा और बोलने को होता ही है,लेकिन तब तक सुमन जा चुकी थी)…….

Language: Hindi
206 Views

You may also like these posts

नशा नाश की गैल हैं ।।
नशा नाश की गैल हैं ।।
Dr. Akhilesh Baghel "Akhil"
सुख दुख
सुख दुख
पूर्वार्थ
दिल टूटा है।
दिल टूटा है।
Dr.sima
** चिट्ठी आज न लिखता कोई **
** चिट्ठी आज न लिखता कोई **
surenderpal vaidya
ख्वाबों का कातिल
ख्वाबों का कातिल
सिद्धार्थ गोरखपुरी
दोहा त्रयी. . . .
दोहा त्रयी. . . .
sushil sarna
कविता-आ रहे प्रभु राम अयोध्या 🙏
कविता-आ रहे प्रभु राम अयोध्या 🙏
Madhuri Markandy
शिवहर
शिवहर
श्रीहर्ष आचार्य
The Journey Of This Heartbeat.
The Journey Of This Heartbeat.
Manisha Manjari
ये जो लोग दावे करते हैं न
ये जो लोग दावे करते हैं न
ruby kumari
सावित्री और सत्यवान
सावित्री और सत्यवान
Meera Thakur
कौन बताता है नदियों को
कौन बताता है नदियों को
भगवती पारीक 'मनु'
बेटियां
बेटियां
करन ''केसरा''
*बुरे फँसे सहायता लेकर 【हास्य व्यंग्य】*
*बुरे फँसे सहायता लेकर 【हास्य व्यंग्य】*
Ravi Prakash
मुझे हर वो बच्चा अच्छा लगता है जो अपनी मां की फ़िक्र करता है
मुझे हर वो बच्चा अच्छा लगता है जो अपनी मां की फ़िक्र करता है
Mamta Singh Devaa
लाया था क्या साथ जो, ले जाऊँगा संग
लाया था क्या साथ जो, ले जाऊँगा संग
RAMESH SHARMA
लेखाबंदी
लेखाबंदी
Deepali Kalra
जर जमीं धन किसी को तुम्हारा मिले।
जर जमीं धन किसी को तुम्हारा मिले।
सत्य कुमार प्रेमी
किसी से कभी नहीं ,
किसी से कभी नहीं ,
Dr fauzia Naseem shad
मैं चट्टान हूँ खंडित नहीँ हो पाता हूँ।
मैं चट्टान हूँ खंडित नहीँ हो पाता हूँ।
manorath maharaj
🙅बस एक सवाल🙅
🙅बस एक सवाल🙅
*प्रणय*
A pandemic 'Corona'
A pandemic 'Corona'
Buddha Prakash
✨मुस्कुराना आसान होता है पर मुस्कुराहट के पीछे का राज जानना
✨मुस्कुराना आसान होता है पर मुस्कुराहट के पीछे का राज जानना
Aisha mohan
*खूबसूरत ज़िन्दगी*
*खूबसूरत ज़िन्दगी*
शिव प्रताप लोधी
मोहब्बत से जिए जाना ज़रूरी है ज़माने में
मोहब्बत से जिए जाना ज़रूरी है ज़माने में
Johnny Ahmed 'क़ैस'
रक्त एक जैसा
रक्त एक जैसा
Dinesh Kumar Gangwar
ॐ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
मानव शरीर पाकर भी
मानव शरीर पाकर भी
Shweta Soni
ग़म
ग़म
Harminder Kaur
"फिर बच्चा बन जाऊँ"
Dr. Kishan tandon kranti
Loading...