कैसे हरूँ मुरलिया
बंसीधर ने जब जब बंसी
बाजुबन्द में बांधी ।
चिंतित हो कह उठते ग्वाले
आने को है आंधी ।
मोर मुकुट का पंखी चंदवा
गत आगत का ज्ञाता ।
कुछ न होगा कहता सबसे
सबको धैर्य बंधाता ।
कान्हा ने जब नाग कालिया
नाथा सबक सिखाया ।
यमुना तट पर जुटी भीड़ का
उखड़ा मन हरषाया ।
आगे चल जब कृष्ण मुरा की
जम कर हुई लड़ाई ।
बंसी टूटी गिरी धरा पर
राधा मन मुस्काई ।
मार असुर को श्री कृष्ण जब
नामित हुए मुरारी ।
गोपाला के ओंठो चहकी
मुरली की स्वर लहरी ।
राधा ने जल भुन कर कोसा
कहा कृष्ण को छलिया ।
लगी सोचने चिंतित हो वह
कैसे हरूँ मुरलिया ।