**कैसे सहूँ दरमियाँ दूरी मै*
**कैसे सहूँ दरमियाँ दूरी मै*
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सैंया बिना हो गई अधूरी मै,
कैसे सहूँ दरमियाँ दूरी मै।
जिंदाजिली मे मै रहना चाहूँ,
बन जाऊँ कहीं मजबूरी मै।
दरियादिली में डूबता जाऊँ,
कर दूँ मुरादें सारी पूरी मै।
सिर गोद मे रखो आन मेरे,
हाथों से खिला दूँ चूरी मै।
जफ़ा सह न पाए मानसीरत,
सीने में घोंप दूँ झट छूरी मै।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)