कैसे समझाऊं उसे
कैसे समझाऊं उसे
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कैसे समझाऊं उसे जो दिलबर रूठ गया है
हाथ पकड़ के चल रहा था
जो पीछे छूट गया है
अभी-अभी तो मिली थी मुझे उनके दिल की दौलत
आज मैं फिर खाली हाथ रह गया हूं
मानो मेरा सब कुछ लुट गया है
जब तुमने मुझे लगाया था गले
तब मैंने सोचा था मुझसा दौलत मंद कोई नहीं है
मन बड़ा प्रसन्न था दिल हो गया था कुछ पल के लिए निहाल
मगर जब से तुमने चुराया है
दिल मेरे दिल से
मैं हो गया हूं कंगाल
क्यों कुछ पल के लिए दिल्लगी करके
मुझे अपनां दीवाना कर गए तुम
जब आई फिर मिलन की बेला तो बहाना कर गए तुम
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आशु कवि-योग शिक्षक के पी एस चौहान गुरु आरजू सब-रस कवि एवं मंच संचालक रिपोर्टर फोटोग्राफर मालवी एवं हिंदी हास्य व्यंग लेखक गुरान सांवेर इंदौर