कैसे संवरे भारत की तकदीर ,?
हंगामें तो रोज़ ही खड़े होते हैं मगर ,
जाने क्यों सूरत फिर भी नहीं बदलती।
कुछ भी कर लो जतन मगर हाय !,
इस मुल्क कि तक़दीर नहीं बदलती।
एक क़दम बढ़ाना भी हुआ मुश्किल ,
इसकी सरज़मीं अब आग है उगलती।
शराफत का नक़ाब ओढे रहता हर इंसा ,
यूँ उसके अंदर हैवानियत है सदा पलती।
समझकर खिलौना बेक़सूर, बेबस जिंदगी को ,
किस कदर शैतानो कि नियत है बदलती।
थक भी जाएँ कानून और इंसाफ से झूझते ,
जंग यह किसी इन्केलाब को नहीं बुलाती।
ऐ चमन के फूलों-कलिओं !बन जाओ अब शोले ,
इस गुलिस्तां से तुम्हारी हिफाज़त की नहीं जाती।
कैसे संवरे आखिर भारत कि धुंधली तस्वीर ,
रंग -ऐ-जोश में किसी भी लिहाज़ से नहीं ढलती।