क्या पता है तुम्हें
अब मानता है रब
तो वो सिर्फ तुम्हें,
करार आता है उसे
बस देखने से तुम्हें,
जब पड़ती है तुम्हारी
ये निगाहें उसपर,
बिजलियां गिरती है उसपर,
क्या पता है तुम्हें,
फिर कैसे रोक लें हम
उसे चाहने से तुम्हें ।।
संभालता है फिर भी
वो खुद को मुश्किल से,
चैन मिलता है उसे
बस मिलने से तुम्हें,
तुम कुछ ना बोलो
तो भी तुम्हारी आवाज़
कानों में गूंजती है उसके,
क्या पता है तुम्हें,
फिर कैसे रोक लें हम
उसे चाहने से तुम्हें ।।
खोया खोया रहता है
वो तुम्हारी याद में,
रातें जागकर गुजारता है
वो तुम्हारी याद में,
और जब लग जाए
आंख कभी मुश्किल से,
बंद आंखों से तुम्हें देखता है
क्या पता है तुम्हें,
फिर कैसे रोक लें हम
उसे चाहने से तुम्हें ।।
मन ही मन चाहते
तो हो तुम भी उसे,
कभी कभी छेड़ते
तो हो तुम भी उसे,
जबसे आए हो
जिंदगी में उसकी,
जिंदगी उसकी
बन गए हो तुम,
क्या पता है तुम्हें,
फिर कैसे रोक लें हम
उसे चाहने से तुम्हें ।।
खूबसूरती तुम्हारी देखकर
समय भी ठहर जायेगा,
वो तो एक अदना सा दिल है
उस पर क्यों कसूर जाएगा,
अब तो उसकी जान तुममें है,
क्या पता है तुम्हें,
फिर कैसे रोक लें हम
उसे चाहने से तुम्हें ।।
तुम्हारे लिए तो वो
कुछ भी कर जाएगा,
तुम कहो तो धड़कना
भी भूल जाएगा,
तुम्हारी हर बात वो मानता है,
क्या पता है तुम्हें,
फिर कैसे रोक लें हम
उसे चाहने से तुम्हें ।।