कैसे मान ले ये मजहबी बातें ठीक हैं
तुम इसे स्वप्न मान भूल चुके,
यह मेरे लिए एक दंश हैं
तूने जिस चीज़ को ढाल बनाया
मुश्किलें हमारी बढ़ी
सम्मान से दो टूक कमाई में
सामुहिक जगह है मंदिर मस्जिद
इनकी भी बाट लगाई तूने.
किस पर गर्व करे हम,
जिस पर है सबका हिस्सा
वो चीज़ ही गंवाई सबने,
कैसे मान लें ये मजहबी बातें ठीक है.
हंस महेन्द्र सिंह