कैसे प्रेम इज़हार करूं
त्याग
उर भीतर आदर तब अब है, कर्त्तव्य मेरा एक ढाल
कुल भूषण उष्णीष प्रतिष्ठा, सम्रांजक रखा संभाल
त्याग समर्पण वज्र मेरे, फिर जीती बाज़ी हार थरूं
पग पर अपने खड़ा न था तो, कैसे प्रेम इज़हार करूं
समय चक्र के क्रीड़ा क्रम में, नायिका या नारी थी
जन्म भूमि कर्म प्रतिष्ठा, अपनी भी जिम्मेदारी थी
पराकाष्ठा आराध्य मेरी तू, उद्धार का उदगार धरूं
पग पर अपने खड़ा न था तो, कैसे प्रेम इज़हार करूं
निशाकाल उत्सुक मन मंदिर, ऋतु बसंत मन माना
हिम शीतल तूहित कणों को, कमलों पर गिरता जाना
अभिशापित स्वर्णिम स्वप्न में, कंदन करुण पुकार करूं
पग पर अपने खड़ा न था तो, कैसे प्रेम इज़हार करूं
जब सम्भला वसुधा सतह पर, नई उम्मीद जगाया था
परिणय बंधन में बंधने का, तभी संदेशा आया था
अंतर मन में प्रश्न लिए मैं, क्यूं तेरा प्रतिकार करूं
पग पर अपने खड़ा न था तो, कैसे प्रेम इज़हार करूं
कभी नहीं अपशब्द कहें न, सोची वीभत्स छाया
मन के अंदर तेरे प्रति भी, कभी न पनपी माया
सखा धर्म आधार शीला में, स्नेह नींव स्वीकार करूं
पग पर अपने खड़ा न था तो, कैसे प्रेम इज़हार करूं
अनुनय विनय आदर्श मीत का, तूने दिया उपहार मुझे
कर्त्तव्यों के पृष्ठ भूमि पर, तूने दिया आधार मुझे
अब कैसे ऋण चुकाऊ, क्या क्या मैं स्वीकार करूं
पग पर अपने खड़ा न था तो, कैसे प्रेम इज़हार करूं