कैसे दिन ये गुज़ारे गये हैं
—-ग़ज़ल—
जो तुम्हारे हमारे गये हैं
ज़िन्दगी के सहारे गये हैं
इस महामारी के नाम पर तो
लोग बे-मौत मारे गए हैं
उनपे क्या बीतती उनसे पूछो
जिनकी आँखों के तारे गये हैं
बेटे की याद में रो के माँ की
सूख अश्क़ों के धारे गये हैं
जाने कब वापसी होगी उनकी
छोड़ घर जो बेचारे गये हैं
सिर्फ़ मझधार ही दूर तक है
छूट सारे किनारे गये हैं
भूल पायेगा कोई न “प्रीतम”
कैसे दिन ये गुज़ारे गये हैं
प्रीतम राठौर श्रावस्तवी
श्रावस्ती (उ०प्र०)
9559926244