‘कैसे जीवन जिएँ’
जिंदगी एक रंग मंच है।जहाँ जीव अलग अलग चरित्र निभाता है।ये चरित्र प्राणी के विचारों पर निर्भर करते हैं। और ये विचार जगत की परिस्थिति और व्यवहार के कारण और कुछ स्व प्रवृत्ति के कारण भी आते रहते हैं। कभी कभी हमारे कार्यों या इच्छाओं के विरुद्ध रोड़े आ जाते हैं तो हम या तो निराश हो जाते हैं या क्रोधित हो जाते हैं । तब हम रोड़े अटकाने वाले को मारना चाहते हैं या अपने को मारते रहते हैं जो समस्या का समाधान नहीं है। अगर मार्ग में रोड़ा आ जाए तो हमें मार्ग बदल लेना चाहिए।या कामना रहित हो कर प्रसन्नता पूर्वक जो मिला है उससे संतुष्ट होकर जीवन व्यतीत करना चाहिए।हाँ अकर्मण्यता नहीं अपनानी है।कर्म करते रहें क्या देना है क्या नहीं वो ईश्वर पर छोड़ दीजिए। मन कर्म विचार शुद्ध रखिए। फल अवश्य मिलेगा। स्वर्ग नर्क सब यहीं अनुभव होता है। किसी चीज के इतना आदी मत बनिए कि उसके बिना जी ही न पायें।
-Gn