कैसे चुप रहें हम?
दौर-ए-जुल्मत ज़ारी है,
आख़िर कैसे चुप रहें हम?
मुल्क पर वहशत तारी है,
आख़िर कैसे चुप रहें हम?
सच के लिए सुकरात ने
हंसते हुए पीया था ज़हर!
अब आई हमारी बारी है
आख़िर कैसे चुप रहें हम?
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