कैसे-कैसे काम करते हैं तेरी बस्ती में सब
कैसे-कैसे काम करते हैं तेरी बस्ती में सब
दिल को भी नीलाम करते हैं तेरी बस्ती में सब
हैं निठल्ले और ख़ाली काम कुछ करते नहीं
बैठकर आराम करते हैं तेरी बस्ती में सब
बोलियाँ ईमां की लगती हैं कहीं पर जिस्म की
काम तो बदनाम करते हैं तेरी बस्ती में सब
रोज़ उठते ही चढ़ाते जाम पर वो जाम हैं
सुब्ह को ही शाम करते हैं तेरी बस्ती में सब
घी से खाओ पी के गाओ ज़िन्दगी कहते इसे
ये ही इक पैग़ाम करते हैं तेरी बस्ती में सब
नाम होगा क्या नहीं बदनाम होकर भी अगर
इस तरह से नाम करते हैं तेरी बस्ती में सब
कुछ छिपाते ही नहीं सामने सबके करें
जो भी करते आम करते हैं तेरी बस्ती में सब
काम कैसा हो मगर उनको तो दौलत चाहिये
बिन लिये कब दाम करते हैं तेरी बस्ती में सब
ले के तुम ‘आनन्द’ आओ राम जैसा हो कोई
रावनों के काम करते हैं तेरी बस्ती में सब
– डॉ आनन्द किशोर