कैसे कहूँ कि तेरे बिना ग़म नहीं हुआ
कैसे कहूँ कि तेरे बिना, ग़म नहीं हुआ
जो भी हुआ, जितना हुआ कम नहीं हुआ।
औरों की तरह मैं भी तन्हा जी गया तो क्या
सच कहूँ जीने का कभी भरम नहीं हुआ।
कह सकूँ तो कह दूं, मगर कह नहीं सकता
मेरे दर्दे-दिल का कोई मरहम नहीं हुआ।
थक भी गया हूँ, अब मैं तेरे इंतज़ार में
मगर हौसला है, मैं अभी बेदम नहीं हुआ।
इक दिन भी ऐसा ना हुआ, तुम याद ना आए
अब तक मगर तेरा कोई रहम नहीं हुआ।
©आनंद बिहारी, चंडीगढ़
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