कैसे कहदूँ प्यार नहीं है ?
कैसे कहदूँ प्यार नहीं है ?
कैसे कहदूँ प्यार नहीं है ?
वह मेरी झंकार नहीं है ?
बिन बाती क्या दीप जला है ?
कहीं रेत बिन बीज फला है ?
कैसा सागर नदी नहीं तो
जलद कहाँ जो धार नहीं है ?
कैसे कहदूँ ………………
देखा विधु को बिना जुन्हाई ?
प्रीत बिना खिलती तरुणाई ?
शुष्क मरुस्थल-सा है जीवन
जबतक घर श्रृंगार नहीं है ।
कैसे कहदूँ ………………
रोम-रोम में गंध उसी की
कर्ण- गेह में गूँज हँसी की
अधर परस पाये बिन उसका
बजता प्रेम- सितार नहीं है ।
कैसे कहदूँ ………………..
अशोक दीप✍️
जयपुर