कैसे करूं बयां मैं!!
2212 122 2212 122
देखो शिकन नहीं है , मेरे जबीं पे यारों।
क्या दौड़ था जिया मैं, कैसे करूं बयां मैं।
ख़्वाब में चांदनी थी, आंखों में रोशनी थी।
खिलते हुए लवों पे, दिखती सदा खुशी थी।
करते थे इश्क़ जब हम, बनते सदा थे मरहम।
देखो यही डगर है , सबको यहां खबर है।
बनकर के मुंतजिर हम, राहों में खोजते थे।
आती नहीं थी वो तो, खुद को ही कोसते थे।
रुकते थे एक छत पर, बस देखने उन्हीं को।
नादानियों के बल पर, जीता था जिंदगी को।
लेकिन हुआ था ऐसा उसको जो खो दिया था।
ऐसा लगा कि पत्थर ,आंखों ने रो दिया था।
सहकर जुदाई तेरी आंसू को था पिया मैं।
देखो शिकन नहीं है , मेरे जबीं पे यारों।
क्या दौड़ था जिया मैं, कैसे करूं बयां मैं।
©®
दीपक झा रुद्रा ❤️