** कैसी ख़ामोशी **
मैं खामोश हूं, पर जुबां बोलती है
जुबां जो कहती है,वह मन की आवाज नहीं है
जुबां खामोश ही तो आँखें बात करती है
खामोश रहकर भी
हम दिल की बात कहते हैं।
फिर कैसी ख़ामोशी ! कैसी चुप्पी ?
मैं न बोलकर भी बोलता हूं
न कहकर भी सब कह जाता हूं
फिर क्यों मुझे ?
ख़ामोशी का इल्ज़ाम दिया
क्या ख़ामोशी में कुछ नहीं छुपा ?
छुपा है ग़मों का राज मगर
चेहरा इंकार करता है
फिर किस तरह मैं खामोश हूं ।।
?मधुप बैरागी