*कैसी होती पिता की कहानी*
कैसी होती पिता की कहानी
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आओ सुन लो मुख से जुबानी।
कैसी होती पिता की कहानी।
खींचातानी में दिन सारा कटता,
हर रोज थोड़ा थोड़ा सा मरता,
कब होगी सुबह उनकी सुहानी।
कैसी होती पिता की कहानी।
रोजी रोटी में वो उलझा उलझा,
बिगड़ा मुकद्दर कभी न सुलझा,
इन्हीं मसलों में की गई जवानी।
कैसी होती पिता की कहानी।
घर बाहर की सारी जिम्मेदारी,
खुद की देखता न कभी बीमारी,
कम उमर में झुर्रियां हैं निशानी।
कैसी होती पिता की कहानी।
सभी के मन की बात वो समझे,
उनके भावो को कोई न समझे,
खत्म होती नहीं बेचैनी हैरानी।
कैसी होती पिता की कहानी।
उनके जीवन की डगर कठिन है,
बेशक पत्नी बच्चे भाई बहिन है,
अकेले कटती है बेरुखी वीरानी।
कैसी होती पिता की कहानी।
घटती बढ़ती रहें जीने की सांसे,
कोई सुनता नहीं दबी हुई बातें,
सदा देता ख्वाबों की कुरबानी।
कैसी होती पिता की कहानी।
मनसीरत हरदम बांधे कफ़न है,
सीने में सारे अरमान दफन है,
आँखें श्यामल सी है सूरमेदानी।
कैसी होती पिता की कहानी।
आओ सुन लो मुख से जुबानी।
कैसी होती पिता की कहानी।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)