*”कैसी है ये दिल्लगी”*
“कैसी है ये दिल्लगी”
कभी हंसाये कभी रुलाये ,
कभी नफरत कभी गुस्सा दिलाये,
कभी खुश होकर प्यार जताये ,
दिल दुखाये फिर दर्द की दवा बन जाये ,
कैसी है ये दिल्लगी
रिश्तों की डोर से बंधे ये प्रीत ,
आंखों को नम करे गमगीन हो ,
नजरों से देख छुपते छुपाते ,
सांसो की धड़कन यूँ ही बस जाते ,
ये सोचकर तेरी ये अदाएं देख रह जाते ,
कैसी है ये दिल्लगी
तुम संग प्रीत जुड़ी नयन मिले ,
दुनिया की रीत रिवाजों से मिले ,
जीवन संगनी बन पिया घर चले ,
नव जीवन हमसफ़र साथ मिले ,
फिर भी क्यों दूर रहकर सताते ,
कैसी है ये दिल्लगी
गुजर जायेगा ये वक्त भी ,
अजीब सा इम्तहान है ये ,
कभी रोते बिलखते परिजन,
कभी हंसते हंसाते हुए से ,
कभी चुपके से पीछे छोड़ जाते ,
कैसी है ये दिल्लगी
नयन तुम्हारा इंतजार करे ,
हर पल मन में दीदार करे ,
सपनों में देख झूठा दिलासा ,
फिर भी दिल तुझसे ही प्रीत करे ,
कैसी है ये दिल्लगी
कभी दिल दुखाते कभी हंसाते ,
कभी आंखों में आँसू भर जाते ,
सुख दुख दोनों जब मिल जाते ,
कभी गीत गुनगुनाते मन बहलाते,
एक दूजे बिन हम रह ना पाते।
कैसी है ये दिल्लगी
कैसी है ये चाहत तेरी मेरी ,
मधुर संबंध नाजुक हालत में भी,
तन्हाइयों में परछाई बन साथी बन,
विश्वास दिलाकर उम्मीद बंधाये ,
कैसी है ये दिल्लगी
कभी समझ ना आये।
शशिकला व्यास✍️