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18 Jul 2020 · 2 min read

कैसी विपदा अाई मुल्क में!

छंद मुक्त रचना

कैसी विपदा अाई मुल्क में

कैसी विपदा अाई मुल्क में,
क्या दीपक मैं गीत लिखूं।
वहशीपन ने तोड़ी गुड़िया
मैं तो पापी का जीत लिखूं।

प्रथम पद

हाल हुई बदहाल है उनकी,
जो खुद में हैं गगन समेटी ।
खौफ भरी आंखे है उनकी,
अरे घर घर में सहमी है बेटी।
इस विपदा का हल क्या होगा?
ना जाने क्या कल पल होगा!
आज है चिंता डर व्याप्त हृदय में
ना जाने कब छल बल होगा।
उनके मस्तक पर चिंता रेखा
कल जल हमने आंख में देखा
आज डर रही हमसे बेटी
तुम्हीं कहो कहो क्यों मीत लिखूं?
कैसी विपदा अाई मुल्क में,
क्या दीपक मैं गीत लिखूं।
वहशीपन ने तोड़ी गुड़िया
मैं तो पापी का जीत लिखूं।

द्वितीय पद

पाप करो फिर बचोगे कैसे,
वर्णित उपाय है संविधान में।
फेंको पैसा और देखो तमाशा
वर्णित विधान है संविधान में।
कब नव नीति गढ़ेगा दिल्ली ऐसा
कि मचे कहर शैतानी में।
अगर नहीं ऐसा कर सकते
तो डुबो चुल्लुभर पानी में।
अगर नहीं हिम्मत है तुझमें,
तो छोड़ो कुर्सी तुम सरकारों।
हाल हुआ बदहाल मुल्क का,
कारण हो तुम सब गद्दारों ।
कैसी विपदा अाई मुल्क में,
क्या दीपक मैं गीत लिखूं।
वहशीपन ने तोड़ी गुड़िया
मैं तो पापी का जीत लिखूं।

तृतीय पद

अरे सत्ता कैसे बने विरोधी
दुराचारी और पापी का।
सब सरकारे हैं प्रतिफल
घृणित कार्य संतापी का।
गुंडों के बल पर आए वो
सबलता और वो रौब जमाने।
राजनीति है खेल सरीखे
आते हैं वो दिखे दिखाने।
इनसे कोई उम्मीद नहीं है
मुझको और तू भी मत रख।
किन्तु मुझसे ना हो पाएगा
जो सत्ता के पक्ष में गीत लिखूं!
कैसी विपदा अाई मुल्क में,
क्या दीपक मैं गीत लिखूं।
वहशीपन ने तोड़ी गुड़िया
मैं तो पापी का जीत लिखूं।

दीपक झा रुद्रा

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 433 Views
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