कैसी नादान है तू
कैसी नादान है तू मोहब्बत को न समझ पाई
मैंने की वफ़ा फिर भी मुझे रास ना आई
जलकर ख़ाक हुआ दिल अपना मिली इश्क़ में
बस तन्हाई।।
कैसी नादान है तू मोहब्बत को न समझ पाई
मैंने की वफ़ा फिर भी मुझे रास ना आई
जलकर ख़ाक हुआ दिल अपना मिली इश्क़ में
बस तन्हाई।।