कैसी दुनिया है की जी भी रहे है और जीने के लिए मर भी रहे है । क्या अजब लीला है तेरी की जो खो रहे ह, आखिर वही पा रहे
कैसी दुनिया है की जी भी रहे है ,और जीने के लिए मर भी रहे है ।
सुबह से शाम तक कमाने को दौड भी रहे बस पता नही कहाँ से आ रहे ,हैं और किधर जा रहे।
कैसी कसमकशहै यह है की जिंदगी को जलने के बाद भी जो पैसे आते हैं ,आखिर वह कहां जा रहे हैं।। ताज्जुब तो तब होता है जनाब की दिनभर काम करने के बाद पता चलता है की जो को रहे हैं जो खो रहे है,वही पा रहे हैं