छंद मुक्त कविता : जी करता है
*उड़ीं तब भी पतंगें जब, हवा का रुख नहीं मिलता (मुक्तक)*
हमे अब कहा फिक्र जमाने की है
10-भुलाकर जात-मज़हब आओ हम इंसान बन जाएँ
विश्वेश्वर महादेव
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
प्यार चाहा था पा लिया मैंने।
रमेशराज की जनकछन्द में तेवरियाँ
ओ पंछी रे
krishna waghmare , कवि,लेखक,पेंटर
अयोग्य व्यक्ति द्वारा शासन
"रंग भले ही स्याह हो" मेरी पंक्तियों का - अपने रंग तो तुम घोलते हो जब पढ़ते हो
लफ्जों के जाल में उलझा है दिल मेरा,
एहसास ए तपिश क्या होती है
गुजर गई कैसे यह जिंदगी, हुआ नहीं कुछ अहसास हमको
मत जलाओ तुम दुबारा रक्त की चिंगारिया।