कैसी चाहत है
यह कैसे कल की चाहत है ।
आज लम्हा लम्हा घातक है ।
उठ रहे हैं तूफ़ान खमोशी के ,
साहिल पे नही कोई आहट है ।
… विवेक दुबे”निश्चल”@…
यह कैसे कल की चाहत है ।
आज लम्हा लम्हा घातक है ।
उठ रहे हैं तूफ़ान खमोशी के ,
साहिल पे नही कोई आहट है ।
… विवेक दुबे”निश्चल”@…