कैसी घड़ी है, कितनी खुशी है
कैसी घड़ी है, कितनी खुशी है, कलियां चमन में खिलने लगी है।
महक उठे हैं गुल गुलशन में सारे, पैरों में पायल बजने लगी है।।
कैसी घड़ी है, कितनी खुशी है————————।।
मालूम नहीं है किसी को यह बात, वह रात कल की बीती कैसे।
भूल गए गम सारे अपने हम, जीते हैं लोग यहाँ गम में कैसे।।
कैसा असर है, गम से बेखबर है, खुशबू फिजाओं में उड़ने लगी है।
महक उठे हैं गुल गुलशन में सारे, पैरों में पायल बजने लगी है।।
कैसी घड़ी है, कितनी खुशी है———————-।।
रोशन हुआ है यह जग सारा, हाथों में लेकर खड़े हैं मशालें।
दमक रहा है यहाँ हर चेहरा, अंधेरे घरों में हुए हैं उजालें।।
कैसी सुबह है, कैसी उमंग है, सागर में मौजें चलने लगी है।
महक उठे हैं गुल गुलशन में सारे, पैरों में पायल बजने लगी है।।
कैसी घड़ी है, कितनी खुशी है————————-।।
हवाओं से पूछो नहीं तुम, इनकी मस्ती का राज ऐसे।
क्यों नाचने लगे हैं मयूर, मस्त होकर बाँगों में ऐसे।।
कैसी महफ़िल है, कितनी रंगीन है, धरती दुल्हन सी लगने लगी है।
महक उठे हैं गुल गुलशन में सारे, पैरों में पायल बजने लगी है।।
कैसी घड़ी है, कितनी खुशी है———————।।
सूरत हसीन कितनी वह लग रही है, जैसे जन्नत की वह हुर्र है।
दिल को लगी है वह बहुत प्यारी, जैसे जीवन का वह नूर है।।
कैसी कशिश है, कितनी हसीन है, जिंदगी जवां फिर से होने लगी है।
महक उठे हैं गुल गुलशन में सारे, पैरों में पायल बजने लगी है।।
कैसी घड़ी है, कितनी खुशी है———————-।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)