कैसा विकास और किसका विकास !
यह विकास हो रहा है देश में ,
या कोई छलावा।
समझ कुछ भी नहीं आ रहा ।
हमें दिख तो रहा है विकास ,
मगर कहां !
बढ़ती मंहगाई में,
अराजकता में
जनता के असंतोष में
धार्मिक साम्प्रदायिकता , जातीय हिंसा और नारी संबंधी जघन्य अपराधों में।
लूट मार चोरी डकैती ,हत्या ,
हर तरफ खौफ और नफरत का माहौल ,
हां! यही विकास हमें दिख रहा है ,
और कहीं कोई विकास नहीं दिख रहा ।
कहते हुए सुनते हैं ,
सबका साथ सबका विकास !
किसका साथ ? किसका विकास ?
सब परिकल्पना है जी !
धनिक वर्गों का साथ ,और उन्ही का विकास ।
बेटी बचाओ ,बेटी पढ़ाओ !
सब झूठ !
न बेटियां बच रहीं है न ही पढ़ पा रही है ।
आर्थिक विकास की बातें :सब झूठ !
विदेशों से साठ गांठ:किस लिए !
???
कुछ समझ नहीं आ रहा ,
कुछ सुधार होता भी नहीं दिख रहा ,
फिर कैसा विकास !
सब धोखा है ।