कैसा लगा रोग
न जाने एक तबके को कैसा लगा रोग,
हाथ पैर कटवा कर भीख मांगते लोग,
पेट भरने के लिए क्या मर-मर जीना जरूरी है?
जान बूझकर कटवाते अंग यह कैसी मजबूरी हैl
कोई तो इनको समझा दे यह दुनिया कर्मभूमी हैl
मेहनत करता जो यहां पर उसको कोई न कमी हैl
एक दृश्य मेरे सामने आ जाता है रोज,
निकल रही थी मैं मंदिर से लगा प्रभु का भोग,
दौड़कर एक लड़की आई उम्र वर्ष छे सात की,
मेरी नजरें देख विकल हुई लड़की थी एक हाथ की,
जख्म उसके ताजे थे रिस रहा था घाव
चेहरे पर दर्द की शिकन नहीं ,था पेट भरने का चाव
वैसे वैसे लड़के -लड़कियां हर मोड़ चौराहों पर मिल जाते हैंl
खोकर अपना अंग क़ीमती पेट भरने के सिवा और क्या पाते हैं?
रीता यादव