कैसा ये सावन आया,
कैसा ये सावन आया,
मुझको अबकी ना भाया,
बारिश की इन बूंदों ने
जी भर मुझको तड़पाया ।।
बागों में कोयल बोले,
कानो में मिश्री घोले,
अमवा की डाली डाली,
सावन वो गाती डोले।।
पेड़ो पर पड़ गये झूले,
सखियां सब मिलके झूमे,
आएंगे साज़न लेने,
खुशियो से माथा चूमें ।।
बागों, कलियों ने पूछा,
सूनी गलियों ने पूछा,
सावन में जलती क्यों है,
उड़ती तितली ने पूछा।।
कहती है बरखा रानी,
भीगेगी चूनर धानी,
जम के मैं ऐसे बरसूँ,
कर दूँगी पानी पानी।।
उठती हूँ तड़के तड़के,
बैरन ये बिजुरी कड़के,
विरहन के दिल की चौखट,
यादो के शोले भड़के।।
अब तो आ जाओ साज़न,
अब ना तड़पाओ साज़न,
हालत मेरी पहचानो,
मुझको ले जाओ साज़न।।
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D.K. Nivatiya
डी के निवातिया