कैसा ये मधुमास प्रिय?
‘कैसा ये मधुमास प्रिय?’
कैसा ये
मधुमास प्रिये!
जीवन की
मधुरिम राहों में
पाया नव
अहसास प्रिये!
झुलस गए
आशा के पौधे
यौवन झरता
पातों से
सूख गयीं
खुशियों की क्यारी
गजरा रूँठा बालों से
बंद नयन से
गिरते आँसू
मुरझाता
शृंगार प्रिये!
कैसा ये
विश्वास प्रिये !
शुष्क अधर पर
पुष्प खिला दे
बूँद सुख पर्याप्त है
आस जीने
की बँधा दे
संग दुख पर्याप्त है
हौसलों के
पर लगाकर
प्रेरणा न
बन सके
हरित आभा
पीत हरके
वेदना न
सह सके
कोकिला की
कूँक से उल्लास
छिनता है प्रिये!
कैसा ये
वनवास प्रिये!
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ. प्र.)