कैसा यह हुआ सवेरा है
इंसान नहीं है एक यहां
जन-जन हुआ लुटेरा है।
ढ़ोंगी और फरेबी देखो
घर-घर डाले डेरा हैं।
कदम-कदम पर हैं नाग यहां
कदम-कदम पर सपेरा हैं।
मां-बहनें सरेआम लुट रहीं
कैसा यह हुआ सवेरा है।
धन-दौलत के मद में चूर हुआ
इंसान कहां वो बघेरा है।
रिश्ते-नाते सब टूट रहे
स्वार्थ ने आ सबको घेरा है।
जीना हुआ मुहाल यहां अब
आतंक का साया घनेरा है।
इंसान नहीं है एक यहां
जन-जन हुआ लुटेरा है।