** कैसा जूनून है **
** कैसा जूनून है **
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छाया कैसा जुनून है,
क्यों खोलता खून है।
हूँ छाँव की आस में,
आया महीना जून है।
खा कर न कुछ पचे,
ये मिलावती चून है।
नभ मे है धुआँ उठा,
छाई दिल में धून है।
हाथों का क्या काम,
हर थाली में स्पून है।
मनसीरत हिल गया,
सुन दो दूनी दून है।
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सुखविन्द्र सिंह मानसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)