कैसा क़हर है क़ुदरत
क़ुदरत का ये कैसा क़हर है
साँझ से भोर तक
जिंदगी का हर पल
रहस्य लगता है
लगता है गली के कुत्ते –
और पेड़ों पे
गौरैइया भी बौउरा गये हैं
सब चुप हैं
हर ओर बस सन्नाटा है
घर के भीतर अपनों के
दिल का धड़कन
और पड़ोसियों के
सिर्फ़ साँस का शोर
सुनाई देता है
न जाने कहाँ गये
जान की बाज़ी का शोर करे वाले
उनकी आवाज़ तो
सिर्फ़ मौत के ख़बर
के ख़ौफ़ से ही बँद है
साँझ से भोर तक
हर पल एक सन्नाटा है