कैलेंडर फिर बदल जाएगा
न जनवरी दरवाजा खटखटाएगी
न दिसंबर विदा में हाथ हिलाएगा
वक्त के पंछी की चोंच में टंगा कैलेंडर
फिर बदल जाएगा।
तारीखें तय करती जाएंगी ऊंचाइयां
और ऊंचाइयों से झरते रहेंगे
उम्र के साल !
बढ़ जाएंगी कुछ
चेहरों पर झुर्रियां ,सफेद बाल।
कुछ घर हो जायेंगे खंडहर
कुछ पर नया नाम जगमगाएगा।
कुछ लोग हो जायेंगे
आंखों से ओझल
कुछ नए चेहरों से मौसम
खुशगवार बन जायेगा।
वक्त के पंछी की चोंच में टंगे
कैलेंडर का एक एक पन्ना
गर्मी सर्दी बारिश आंधी से
फड़फड़ा कर उतरता जायेगा।
न जनवरी दरवाजा खटखटाएगी
न दिसंबर विदा में हाथ हिलाएगा
वक्त के पंछी की चोंच में टंगा कैलेंडर
फिर बदल जाएगा।
**धीरजा शर्मा***