कैद
क्यों हर किसी को,जमाने पर ऐतबार नहीं होता
इश्क तो इबादत है खुदा की,बार-बार नहीं होता
लगता है इस बेदर्द जहाँ ने, कैद कर लिया एक और मजलूम को ‘देव’
इसिलिए, अब हमें उनका, दीदार नहीं होता
क्यों हर किसी को,जमाने पर ऐतबार नहीं होता
इश्क तो इबादत है खुदा की,बार-बार नहीं होता
लगता है इस बेदर्द जहाँ ने, कैद कर लिया एक और मजलूम को ‘देव’
इसिलिए, अब हमें उनका, दीदार नहीं होता