कैद परिंदा
****** कैद परिन्दा *****
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खुली हवा में रहने दो जिंदा
इंसान से कहे कैद परिंदा
बंद पिंजरे में दम है घुटता
हररोज रहे है पल पल मरता
स्वेच्छाचारी बन भ्रमण करते
मनमर्जियाँ मन की रहे करते
कर शिकार हमें बंदी कर लेते
कालकोठरी की हवा खिलाते
हम भी मन की हैं करना चाहें
करें नभ की सैर पसार बाहें
कारागृह में रहें हम सड़ते
हीरे मोती भी फीके लगते
नीले गगन तले ऊड़ना चाहें
पंक्तिबद्ध हो विचरना चाहें
पंछी तो हम उन्मुक्त गगन के
शौक तेरे से तेरी शरण के
मनसीरत बंधन से छुड़वा दो
बंद दीवारें तुम्हीं तुड़वा दो
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)