कैंसे सह जाते है लोग
कम शब्दों में ऊंची बातें ,
कैंसे कह जाते है लोग ।
गुमसुम होकर दर्दे गम को ,
कैंसे सह जाते हैं लोग ।
अफवाहों के बहते दरिये ,
यूं दमदार नहीं होते ।
सोच समझ वाले भी जाने ,
कैंसे बह जाते हैं लोग ।
इस दुनिया में आने वाले ,
को इक दिन तो जाना है ।
मौत के मुंह में जाते जाते ,
कैंसे रह जाते हैं लोग ।
बहुत समय तक के रियाज़ ,
से कला पकड़ में आती है ।
चंद दिनों में उसको लेकिन ,
कैंसे गह जाते है लोग ।
– सतीश शर्मा ।