केहू फुलवा
केहू फुलवा से रहिया सजावे, केहू कांटा बिछावल करेला
चान कइसे के उतरी अँगनवा, लोग कनखी से ताकल करेला
कवनो आन्ही हो, कवनो बवण्डर, बार बांका न करि पाई ओकर
जेकरा माथे प माई के अँचरा, काल भी ओसे काँपल करेला
फोरि पइब न हमनी के घरवा, नांव लेके धरम-जाति के तूँ
ई ह गंगा अ जमुना के धारा, मइलि सब कर बहावल करेला
ए गो रँग ई हो जिनिगी के हउए, चारि दिन में तूँ घबड़ात बाड़
फूल खिलला से पहिले बगइचा, आके पतझर बहारल करेला
उनसे नेहिया लगवला से पहिले, मन में धरिह ‘असीम’ ए गो कहना
ई ह दीया के आदति पुरनकी, मीत बनि के जरावल करेला
© शैलेन्द्र ‘असीम’