केवल माँ को ज्ञात
एक कला संसार में, केवल माँ को ज्ञात
बिन भाषा बिन बोल के, समझे सारी बात
कहाँ रहे सद्भावना, कहाँ रहे सद्भाव
जब फूलों के गाँव भी, होता हो पथराव
थोड़े दिन ही रह सका, मौसम यहाँ हसीन
ऋतु बसंत के बाद में, जमकर तपी जमीन
तपते पत्थर हैं कहीं, कहीं बिछे कालीन
आदिकाल से चल रहा, कुछ भी नहीं नवीन
जाता है अस्तित्व मिट, छोड़ी अगर जमीन
सागर में मिलाकर हुईं, नदियाँ सभी विलीन