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31 Mar 2023 · 1 min read

केवट का भाग्य

केवट का भाग्य

धरा का रज-रज
पुनीत हुआ
चरण-कमल जब
पड़े कानन में।
उमड़ – उमड़ कर
जलद है आते
दरिया थी
आनन-फानन में।
गंभीर सोच में
डूबे पुरुषोत्तम,
कैसे हो नदी पार?
ये संशय है।
हे केवट! तेरा भाग्य उदय है।।

पंचवटी थी ताक रही
कब आयेंगे राम द्वारे।
पौधे कुसुमित हुए हैं
जीव-जंतु सब पथ निहारे।
देख लखन
बोले भ्राता से ,
निर्झरणी – उफान
अन्तःकरण भय है।
हे केवट! तेरा भाग्य उदय है।।

तट-पार को आगे बढ़े
सहसा केवट
था तरणी लाया।
अहो भाग्य मेरे,प्रभु
आप पधारे
कर-जोड़ मधुर गान गाया।
मन ही मन प्रसन्न हो
केवट से,
बोले तेरा उद्धार
अब तय है।
हे केवट! तेरा भाग्य उदय है।।

रोहताश वर्मा ‘मुसाफ़िर’

Language: Hindi
2 Likes · 801 Views
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