केमिस्ट्री और कविता
केमिस्ट्री और कविता
(कॉलेज के दिनों की एक कविता)
मुझे तो केमिस्ट्री के किताब में भी कविता नज़र आती है।
अमल,क्षार,लवण-साहित्य की पोथियों में पड़ी रसों की याद दिलाती है।
केमिस्ट्री में भी कविता होती है,बात यूँ ही बेदम नहीं।
आवर्त सारणी का अध्ययन पिंगल के पाठ से कम नहीं।
समीकरणों का संतुलन सह विभेदन, अलंकारों का ही अपर रूप।
समावयता, समजात श्रेणी भी इनके ही स्वरूप।
एटॉमिक संरचना का अध्ययन, छंदों की याद दिलाते हैं।
तत्त्व हुए जब शब्द,केमिकल बॉन्डिंग-संधि समास कहलाते है।
ओज, प्रसाद,माधुर्य गुणों को प्रतिक्रिया की गति दर्शाती।
संरचना सूत्र स्वयं,एस्टैन्जा एक बन जाती है।
एक रचना हेतु कवि ज्यों तपते,दिमाग खपाते हैं।
बीकर, बेसिन त्योंही, त्रिपाद तले बर्नर पर तपाते है।
तुलसी,सूर की जगह यहाँ, बॉयल, चार्ल्स, डाल्टन विराजमान।
सच कहता हूँ केमिस्ट्री और कविता दोनों एक समान।
-©नवल किशोर सिंह